साल 2020: कृषि कानून, सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, लॉकडाउन और टिड्डियों का हमला, जानिए किसानों के लिए कैसा रहा ये साल

किसानों और खेती के नजरिए ये साल 2020 बड़ा उठापटक वाला रहा। सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, कोरोना, लॉकडाउन के साथ टिड्डियों के हमलों ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन सबसे बड़ा घटनाक्रम रहा नए कृषि कानून और उनके विरोध में किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन। गांव कनेक्शन की सालाना रिपोर्ट 'दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020' में पढ़िए किसानों के लिए कैसा रहा ये साल

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में 26.3 करोड़ लोग कार्यरत हैं। कोविड-19 महामारी ने साल 2020 में इस क्षेत्र को काफी प्रभावित किया है। खेती किसानी के लिहाज से नए कृषि कानून सबसे बड़ी घटना रहे। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान अध्यादेश के रुप में लाए गए बिलों को सितंबर में संसद में पारित कराया। जिसके बाद नए कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान दिल्ली में बड़े पैमाने पर विरोध कर रहे हैं।

नए कृषि कानून

सितंबर माह में केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को पारित कराया गया। इनमें पहला कानून “कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020” है। इसी तरह दूसरा कानून “कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020” और तीसरा “आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020” है।

ये तीनों कानून किसानों को कॉरपोरेट निवेशकों के साथ अनुबंध पर फसलों का उत्पादन करने की अनुमति देते हैं। यह अनुबंध पारस्परिक सहमति पर आधारित होता है इसके साथ ही यह किसानों को कई तरीकों से अपनी उपज बेचने का अधिकार भी देता है। लेकिन किसानों को यहां इस बात का डर है कि़ यह कानून अनुबंध खेती को बढ़ावा देगा, इससे उनकी जमीन निजी हाथों में चली जाएगी। उन्हें डर है कि यह कानून उनसे उनकी जमीन का मालिकाना हक छीन लेगा। पैन कार्ड पर होने वाली खरीद से सरकारी मंडिया मंडियां (APMC) खत्म हो जाएंगी तो न्य़ूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी भी बंद हो सकती है।

किसानों को इस बात का भी डर है कि इस कानून की वजह से कृषि क्षेत्र कॉर्पोरेट घरानों के हाथों की कठपुतली बन जाएगा। इस डर की वजह से ही देश भर के विभिन्न किसान संगठन एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों की मांग है कि सरकार इन तीनों कानूनों को निरस्त करे।

गाँव कनेक्शन ने जो तीन सर्वे किए उनमें दो कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित थे। पहले सर्वे कृषि क्षेत्र पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव पर था तो दूसरा नए कृषि कानूनों को लेकर किसानो की अवधारणा से संबंधित था। गाँव कनेक्शन का पहला राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण “इंपैक्ट ऑफ कोविड-19 ऑन रूरल इंडिया” व दूसरा “द एग्रीकल्चर पर्सेप्शन ऑफ द न्यू एग्री लॉज” शीर्षक से किया गया था। दोनों सर्वेक्षणों के निष्कर्ष www.ruraldata.in पर उपलब्ध हैं। इनसे संबंधित खबरें पर गांव कनेक्शन पर हिंदी और अंग्रेजी भाषा में पढ़ सकते हैं।

आत्महत्या करने वाले किसान: हर दिन 28 मौतें

आकस्मिक मौतों और आत्महत्याओं पर साल 2020 में प्रकाशित होने वाली राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, साल 2019 में आत्महत्या से होने वाली किसानों की मौतों की संख्या में मामूली कमी आई है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में मौतों की संख्या 10,357 थी, जो साल 2019 में मामूली कमी के साथ घटकर 10,281 हो गई। इनमें से 5957 किसान थे, वहीं 4324 खेतिहर मजदूर थे। इसके अलावा ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इनमें से 5563 पुरुष किसान थे जबकि 394 महिलाएं थीं।

कुल मिलाकर, कृषि क्षेत्र में आत्महत्या की दर, साल 2019 में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों का 7.4 प्रतिशत है। साल 2015 के एनसीआरबी आंकड़ों में किसानों की आत्महत्या के पीछे के कारणों को भी प्रकाशित किया गया था, जबकि साल 2020 के आंकड़ों में सरकार ने यह जानकारी नहीं दी है। केंद्र सरकार का कहना है कि उन्होंने इसे इसलिए प्रकाशित नहीं किया है क्योंकि ज्यादातर राज्यों ने इन आत्महत्याओं के कारणों से संबंधित जानकारी नहीं दी।

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक (PMB) 2020

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 23 मार्च, 2020 को राज्य सभा में पेश किया गया था। इस विधेयक के अनुसार, वे कीटनाशक जो भारत में उपयोग के लिए पंजीकृत नहीं है, उन्हें यहां निर्माण और निर्यात की अनुमति नहीं दी जाएगी, भले ही वे भारत के बाहर अन्य देशों में मान्य हों। इस विधेयक को लेकर जानकारों ने यह आशंका जताई थी कि इसका भारतीय कृषि और किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

एक किसान संगठन, भारत कृषक समाज का कहना है कि इस विधेयक को देखकर ऐसा नहीं लगता कि सरकार साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना चाहती है। विधेयक की वजह से घरेलू उद्योगों में उत्पादन में कमी आएगी और इसका मतलब है कि देश में कृषि निर्यात को नुकसान होगा, वहीं आयात बढ़ जाएगा। किसान संगठन के अध्यक्ष ने उदाहरण देते हुए बताया कि कपास की खेती में इस्तेमाल होने वाला एक कीटनाशक जब घरेलू कंपनी द्वारा विकसित किया जाता है तो इसकी कीमत 3500 रुपए होती है। वहीं जब इसे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी बेचती है तो इसकी कीमत बढ़कर 10,000 रुपए हो जाती है।

कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन का कृषि और किसानों पर प्रभाव

कोविड-19 महामारी के चलते देश में लगाए गए लॉकडाउन प्रतिबंधों का कृषि क्षेत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। हालांकि सरकार ने इस दौरान कृषि और इससे संबद्ध गतिविधियों को प्रतिबंधों के दायरे से मुक्त रखा था, लेकिन इसके बावजूद आवाजाही पर रोक की वजह से मंडियों (राज्य-विनियमित बाजारों) को कृषि वस्तुओं की डिलीवरी में काफी कमी आई।

मई और जुलाई के बीच 20 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 179 जिलों में गाँव कनेक्शन द्वारा किये गए सर्वेक्षण में 25,300 उत्तरदाताओं ने भाग लिया था। इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों मुताबिक 42 प्रतिशत किसान समय पर अपनी फसलों की बुवाई नहीं कर पाए, वहीं 41 फीसदी किसान ऐसे थे जो समय पर अपनी फसल नहीं काट पाए। इसके साथ ही 55 फीसदी किसान ऐसे थे जो समय पर अपनी उपज नहीं बेच सके। सर्वेक्षण के अनुसार किसानों को अपनी उपज को मंडियों में ले जाने और अपनी उसके लिए उचित दाम प्राप्त करने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ा।

इधर, डेयरी किसानों को भी कुछ इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। 56 फीसदी डेयरी किसानों ने कहा कि उन्हें दुध को बाजार तक पहुंचाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही 53 फीसदी डेयरी किसानों को ग्राहक खोजने में दिक्कत हुई। किसानों के मुताबिक इसकी वजह से वे अपने मवेशी बेचने को मजबूर हो गए।

आईडी इनसाइट नामक संस्था द्वारा डेवलपमेंट डेटा लैब के सहयोग से छह राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में 4500 से अधिक घरों में फोन के ज़रिए किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक समय के साथ मंडियों में रबी फसल की खरीद कम हुई है। उदाहरण के लिए साल 2019 की तुलना में इस साल धान, प्याज, और गेहूं जैसी फसलों की बाजारों में बिक्री क्रमशः 6.5 प्रतिशत, 61.6 प्रतिशत और 38.4 प्रतिशत घटी है।

सर्वेक्षण के मुताबिक मंडियों में फसलों की कम खरीद की अन्य वजह सरकारी खरीद नीतियों में कमी और किसानों द्वारा उपज का भंडारण कर लेना भी है। इसके अलावा कई किसान अपने उपयोग के लिए भी उपज बचाकर रखते हैं। हालांकि, सर्वेक्षण के अनुसार अगस्त महीने में साल 2019 की तुलना में खरीफ (गर्मी और मानसून) फसल के लिए नियोजित खेती की भूमि में 7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, लेकिन इसकी मुख्य वजह प्रवासी मजदूरों का घर लौटना है। घर को लौटे मजदूरों के पास खेती के अलावा और कोई काम नहीं रह गया था।

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इसके अलावा, बेरोजगारी दर मई महीने में 70 प्रतिशत थी, जो जुलाई में घटकर 40 प्रतिशत हो गई, लेकिन यह अभी भी लॉकडाउन से ठीक पहले मार्च महीने में बेरोजगारी दर अधिक है।

कोविड-19 आर्थिक पैकेज के हिस्से के रूप में, सरकार ने कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए 1.63 लाख करोड़ रुपये के समर्थन की घोषणा की। जिसका मकसद बुनियादी ढांचे को मजबूत करना था। इसके तहत खाद्य और सब्जियों, मधुमक्खी पालन, सूक्ष्म खाद्य उद्यमों, मवेशियों के टीकाकरण और डेयरी क्षेत्र जैसे संबद्ध गतिविधियों के लिए भी योजनाओं की घोषणा की गई थी।

नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) के माध्यम से किसानों के लिए 30,000 करोड़ रुपये (सामान्य तरीके से दिए गए 90,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त) के अतिरिक्त सहयोग की भी घोषणा की गई। इसके अलावा किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के तहत रियायती ऋणों का भी लाभ उठाया।

पानी से संबंधित मुद्दे: देश में इस्तेमाल होने वाले कुल पानी में कृषि क्षेत्र का 78 प्रतिशत हिस्सा है, जिसका अधिकांश उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। भारत में कई इलाके ऐसे हैं जहां जलवायु परिवर्तन और पानी के प्रबंधन में गड़बड़ी के चलते हर साल जल संकट की स्थिति बनती है। इसलिए, कृषि क्षेत्र की मजबूती के लिए कुशल जल आपूर्ति और इसका सतत उपयोग आवश्यक है।

इसके अलावा साल 2020 में बाढ़ और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से भी आंध्रप्रदेश, असम, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों के विभिन्न हिस्सों में किसानों की फसल बर्बाद हो गई। उदाहरण के लिए इस साल बिहार में बाढ़ के कारण 7.54 हेक्टेयर क्षेत्र पर लगाए गए फसल को नुकसान पहुंचा है। इसी तरह आंध्र प्रदेश में भी कृषि और बागवानी फसलें बर्बाद हो गई, जिसमें 2770 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और किसानों की आजीविका भी प्रभावित हुई।

जैविक खेती और साल 2020

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2020 तक लगभग 27.8 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में जैविक खेती हो रही थी, जो कि भारत में शुद्ध बुवाई क्षेत्र के लगभग 14 करोड़ हेक्टेयर का दो प्रतिशत है। सिक्किम एकमात्र ऐसा राज्य है जहां अब पूरी तरह से जैविक खेती हो रही है।

वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में उनके शुद्ध बुवाई क्षेत्र के लगभग क्रमश: 4.9 प्रतिशत, 2 प्रतिशत और 1.6 प्रतिशत हिस्से पर ही जैविक खेती हो रही है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कम से कम 20 राज्यों में जैविक खेती को लेकर नीतियां और योजनाएं संचालित हैं, लेकिन इसके बावजूद इनमें से कई राज्यों जैसे कि केरल (शुद्ध बुवाई क्षेत्र का 2.7 प्रतिशत) और कर्नाटक (शुद्ध बुवाई क्षेत्र का 1.1 प्रतिशत) में अभी भी जैविक खेती काफी कम हो रही है।

देश ने साल 2020 में कई मोर्चों पर अभूतपूर्व लड़ाइयां लड़ीं, जिसमें सबसे बड़ी लड़ाई कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ी जा रही है, जिसकी वजह से पूरा देश प्रभावित हुआ है। इन सबके बीच, केंद्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई है। जिसके खिलाफ पंजाब और हरियाणा समेत लगभग देश भर के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके अलावा कृषि पर एक अन्य संकट टिड्डी दल के हमले के रूप में भी सामने आया, जिसने देश के लोगों को भुखमरी की आशंकाओं से भर दिया। गाँव कनेक्शन ने कृषि जगत में संकट को लेकर एक जाँच की है। यहाँ देश के कृषि क्षेत्र में साल के कुछ वाटरशेड कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं। पढ़िए वो 4 स्टोरी

farmers protest against farm bill live update

कृषि कानूनों के विरोध में देश के कई राज्यों के किसान दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसकी अगुवाई पंजाब के किसान कर रहे हैं। फोटो अमरजीत सिंह

पहली स्टोरी  किसान आंदोलन: शंभु बॉर्डर से सिंघु बॉर्डर तक किसानों के साथ गांव कनेक्शन के 90 घंटे

‘दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020 में पहली स्टोरी कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पंजाब हरियाणा के किसानों के दिल्ली कूच की है। पंजाब में दो महीने से ज्यादा के धरना प्रदर्शन के बाद किसानों ने 26-27 नवंबर को चलो दिल्ली का नारा देकर दिल्ली कूच किया। हरियाणा के किसान भी उनके साथ हो लिए। हरियाणा सरकार ने किसानों को रोकने के लिए भारी बैरीकेडिंग की, पानी की बौछार की, हाईवे खोदे, सड़कों पर मिट्टी डाली लेकिन किसान सब बाधाएं पार कर दिल्ली पहुंचे और दिल्ली के सीमाओं पर डेरा डाल डेरा डाल रखा है। गांव कनेक्शन के एसोसिएट एडिटर अरविंद शुक्ला और मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट दया सागर ने पंजाब से किसानों के साथ ट्रैवल किया। सड़क पर रुके, आंसू गैस की चपेट में आए और हरियाणा होते हुए दिल्ली पहुंचे। संबंधित खबर यहां पढ़िए और वीडियो देखिए

दूसरी खबर-बिहार के खेतों से पंजाब की मंडियों में हो रही धान की तस्करी

कृषि कानूनों पर हंगामे के बीच देश के कई राज्यों में धान की कीमतों, एमएसपी पर खरीद ने साल 2020 में सुर्खियां बटोरीं। बिहार जहां 2006 में मंडी एक्ट खत्म हो गया था वहां से औने पौने दाम में खरीद कर धान को पंबाज की मंडियों में सरकारी रेट पर बेचा जा रहा। गांव कनेक्शन धान की खरीद, एमएसपी, तस्करी आदि को लेकर पंजाब, बिहार और यूपी से एक के बाद एक कई स्टोरी कीं। 

धान की लूट से संबंधित दूसरी खबर- पंजाब में लगातार हो रही धान तस्करी का भंडाफोड़, यूपी-बिहार से भेजा जा रहा धान

 rice racket from the paddy fields of bihar to the mandis of punjab

बिहार से भारी मात्रा में धान को पंजाब में बेचा जा रहा है, इस संबंध में 90 से ज्यादा पंजाब में एफआईआर भी हुई हैं। 

तीसरी खबर- यूपी : धान का सरकारी रेट 1888, किसान बेच रहे 1100-1200, क्योंकि अगली फसल बोनी है, कर्ज देना है

 न्यूनतम समर्थन मूल्य वह सरकारी मूल्य होता है जो केंद्र सरकार तय करती है, इस बार के लिए सरकार ने धान का एमएसपी 1868 और 1888 रुपए तय किया है। लेकिन यूपी में बड़ी संख्या में किसानों ने एमएसपी के नीचे अपना धान बेचा और बेच रहे हैं। जिन जिलों में सरकारी खरीद शुरू भी हो चुकी है वहां भी किसान 1000-1200 रुपए में धान बेच रहा है। गांव कनेक्शन ने धान खरीद की हकीकत को समझने के लिए कई जिलों की यात्राएं कर ये खबर लिखी, देखिए वीडियो

ground report farmer of uttar pradesh force to sell their paddy bellow msp

उत्तर प्रदेश में इस साल सरकार ने 55 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य रखा है, जबकि उत्पादन इससे कई गुना ज्यादा है। 

केंद्र सरकार वर्तमान में 23 फसलों के लिए हर साल रबी और खरीफ के सीजन के लिए रेट करती है। जैसे इस बार धान की एमएसपी एक ग्रेड धान (उच्च क्वालिटी धान) की 1888 और सामान्य धान के लिए 1868 रुपए प्रति क्विंटल (क्विंटल) थी। किसानों के आंदोलन, भारत में कृषि संकट के संदर्भ में ये एमएसपी बहुत बड़ा फैक्टर है। किसान कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी से नीचे खरीद को कानून अपराध घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

चौथी खबर- टिड्डी हमला: “80 साल की उम्र में मैंने ऐसी टिड्डियां नहीं देखीं, ऐसा ही रहा तो कुछ नहीं बचेगा”

 पूरी दुनिया जिस वक्त कोरोना वायरस से लड़ रही थी। किसानों के ऊपर टिड्डियों के रुप में एक और महामारी ने हमला बोल दिया। दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान और भारत समेत कई देश इससे बुरी तरह प्रभावित हुए। भारत में कोरोना के साथ-साथ किसानों ने अब तक की सबसे बड़ी मुसीबत के रुप में टिड्डियों के हमले झेले। साल 2019 के मई जून से शुरु हुए टिड्डियों के हमले 2020 में काफी बढ़ गए यूपी समेत कई राज्य प्रभावित हुए। टिड्डियां एक बार में कम से कम 100-150 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। ये बहुत चंचल होती हैं, थोड़ी सी रोशनी आवाज होने पर सक्रिय हो जाती हैं। टिड्डियां फस्ट जनरेशन में 18 गुना और दूसरी में 400 गुना तक हो जाती हैं। टिड्डिय़ों के दल कई कई किलोमीटर में फैले होते हैं जो जिस इलाके में उतरते हैं वहां की पूरी फसलें, हरे पेड़-पौधों तक को चट कर जाते हैं। गांव कनेक्शन की टीम से अरविंद शुक्ला और अभिषेक वर्मा ने इसे लेकर ग्राउंड से स्टोर की थी।

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