वैक्सीन के लिए ग्रामीण कैसे करेंगे ऑनलाइन पंजीकरण, सिर्फ 37 % ग्रामीणों के पास स्मार्ट फोन

सरकार ने कोरोना वायरस की वैक्सीन के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य किया है यानी जिस व्यक्ति का पंजीकरण होगा, उसे ही वैक्सीन लगाई जाएगी। ऐसे में जब देश की ग्रामीण आबादी के लिए स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट की पहुंच सीमित है वहां ऑनलाइन पंजीकरण कैसे हो पाएगा, पेश है रिपोर्ट ...

भारत में कोरोनावायरस की वैक्सीन के लिए टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है। ये दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है। केंद्र सरकार ने वैक्सीन के लिए को-विन (CO-WIN) एप्प पर पंजीकरण अनिवार्य किया है यानी जिस व्यक्ति का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं होगा, उसे वैक्सीन नहीं लगेगी।

फिलहाल, केंद्र सरकार प्राथमिकता के आधार पर पहले चरण में देश भर के स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को कोरोना वैक्सीन उपलब्ध करा रही है। इससे पहले सभी राज्यों को इन सभी कर्मियों का डाटा एकत्र करने का आदेश दिया गया और वैक्सीन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म को-विन एप्प पर रजिस्टर किया गया। ऐसे में आने वाले समय में आम नागरिकों को भी वैक्सीन के लिए को-विन एप्प पर रजिस्टर करना होगा।

मगर वैक्सीन को लेकर ग्रामीण भारत के लोगों के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था चुनौती भरी हो सकती है। लॉकडाउन के बाद ग्रामीण भारत के सबसे बड़े मीडिया प्लेटफॉर्म गाँव कनेक्शन के सर्वे में सामने आया है कि सिर्फ 37 फीसदी ग्रामीणों के पास स्मार्ट फोन हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह होगा कि ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य होने पर वैक्सीन के लिए ग्रामीण पंजीकरण कैसे कर सकेंगे? 

देश के अन्य टीकाकरण कार्यक्रम में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को टीका लगाने के लिए अब तक ग्रामीण भारत में आशा कार्यकर्ता, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। टीकाकरण के लिए सरकार की ओर से इन कार्यकर्ताओं को समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

मगर कोरोना टीकाकरण के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य किये जाने पर इन कार्यकर्ताओं में भी इस बात को लेकर असमंजस है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन पंजीकरण कैसे हो सकेगा?

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की आशा कर्मचारी यूनियन की स्टेट प्रेसिडेंट वीना गुप्ता ‘गाँव कनेक्शन’ से बताती हैं, “वैक्सीन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था करना ग्रामीणों के लिए बहुत मुश्किल वाला काम होगा। ज्यादातर ग्रामीणों के पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है, और हैं भी तो एक परिवार में एक के पास है। इससे भी बड़ा काम उनकी जानकारी को एप्प पर डालना होगा क्योंकि पंजाब जैसे कुछ राज्यों में भले ही आशा वर्कर्स स्मार्ट फोन से गाँवों में रिपोर्टिंग कर रही हैं, मगर ज्यादातर राज्यों में ऐसा नहीं है। इसके लिए उत्तर प्रदेश में आशा वर्कर्स को पहले ट्रेनिंग देने की भी जरूरत होगी।”

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में चिकित्साधिकारी और कोरोना संक्रमित मरीज़ों के साथ ग्रामीण स्तर पर काम करते आ रहे डॉ. वरुण कटियार ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “अगर किसी ग्रामीण परिवार में एक के पास ही स्मार्ट फ़ोन है और उस परिवार में तीन से चार लोगों को वैक्सीन लगनी है तो वो पंजीकरण कैसे करेंगे।”

“अब तक टीकाकरण के लिए आशा और एएनएम वर्कर्स कार्ड बनाती आई हैं और ग्रामीण परिवारों में गर्भवती महिलाओं और बच्चों का पूरा डाटा उनके पास होता है, मगर ऑनलाइन प्रक्रिया के लिए वे भी उतनी तैयार नहीं होंगी,” डॉ. वरुण ने आगे कहा।

हालाँकि कोरोना वैक्सीन के लिए आम लोगों को अभी इंतजार करना पड़ सकता है। मगर केंद्र सरकार ने वैक्सीन के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने के साथ आवश्यक दस्तावेज़ की सूची भी जारी की है। पंजीकरण के लिए इन आवश्यक दस्तावेज़ों में लाभार्थी का आधार कार्ड/ड्राइविंग लाइसेंस/वोटर आईडी/पैन कार्ड/पासपोर्ट/मनरेगा जॉब कार्ड/पेंशन दस्तावेज़ के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय की योजना के तहत जारी स्वास्थ्य बीमा स्मार्ट कार्ड शामिल है। इनमें से एक आईडी पंजीकरण स्थल पर भी दिखानी होगी। 

क्या है को-विन ?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने को-विन (Co-Win) नाम का एक ऐसा एप्प विकसित किया है जो कोरोना वैक्सीन से जुड़ी हर प्रक्रिया की निगरानी रखेगा। इसके अलावा जिन लोगों को वैक्सीन लगाई जानी है, उसका डाटा भी इस एप्प पर रजिस्टर करना होगा। फिलहाल अभी यह एप्प आम लोगों की पहुँच में नहीं है और सिर्फ स्वास्थ्य अधिकारी वर्ग ही इसका इस्तेमाल कर पा रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि को-विन हमें दुनिया का सबसे बड़ा कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम चलाने में सक्षम करेगा।

फिलहाल को-विन एप्प को लेकर भी कई तकनीकी ख़ामियाँ भी सामने आई हैं। एप्प में इन ख़ामियों को लेकर महाराष्ट्र में दो दिन के लिए टीकाकरण कार्यक्रम को रोक दिया गया। ऐसे में कोरोना वैक्सीन के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य किये जाने को लेकर जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों और स्वास्थ्य अधिकारियों में भी संशय की स्थिति बनी हुई है।

राजस्थान की राजधानी जयपुर में जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. भूपेश दीक्षित ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “वैक्सीन के लिए अगर आम नागरिकों को खुद ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा तो शहरों से इतर ग्रामीण स्तर पर बेशक समस्याएं खड़ी होंगी और अगर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का काम आशा वर्कर्स और एएनएम को सौंपा जाता है तो भी समस्याएँ खड़ी होंगी क्योंकि उन पर पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत बोझ है।” 

जरूरी यह होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सेंटर बनाए जाएँ। भारत में पहले से ही ग्रामीण सेवा केंद्र हैं जो बहुत बड़ा और व्यापक नेटवर्क है। अगर भारत सरकार इनका सहयोग ले तो यह सरकार के साथ ग्रामीणों के लिए भी बेहतर होगा।

डॉ. भूपेश दीक्षित, जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, राजस्थान

“ऐसे में जरूरी यह होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सेंटर बनाए जाएँ। भारत में पहले से ही ग्रामीण सेवा केंद्र हैं जो बहुत बड़ा और व्यापक नेटवर्क है। अगर भारत सरकार इनका सहयोग ले तो यह सरकार के साथ ग्रामीणों के लिए भी बेहतर होगा,” डॉ. भूपेश दीक्षित कहते हैं।

इससे इतर केंद्र सरकार ने कोरोना काल में कोरोना संक्रमित मरीज़ों का डाटा एकत्र करने के साथ आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए आरोग्य सेतु मोबाइल एप्प का डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार किया था। ग्रामीण स्तर पर इस एप्प के उपयोग किये जाने को लेकर भी कई रोचक आंकड़े सामने आए।

लॉकडाउन के बाद ग्रामीण भारत की मुश्किलों को समझने के लिए भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन के डेटा और इनसाइट्स विंग ‘गांव कनेक्शन इनसाइट्स’ ने एक राष्ट्रीय सर्वे किया। यह सर्वे देश के 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 179 जिलों में 30 मई से 16 जुलाई, 2020 के बीच हुआ जिसमें 25,300 उत्तरदाता शामिल हुए। 

इस सर्वे में जब ग्रामीणों से पूछा गया कि आपके पास किस तरह का फ़ोन है, साधारण मोबाइल या स्मार्ट फोन? तो सर्वे के नतीजों में सामने आया कि सिर्फ 37 फीसदी ऐसे ग्रामीण थे जिनके पास स्मार्ट फ़ोन थे। जबकि एक और सवाल के जवाब में सामने आया कि सर्वे के दौरान स्मार्ट फ़ोन का उपयोग करने वाले सिर्फ 50 फीसदी ग्रामीणों के फ़ोन में आरोग्य सेतु था। बड़ी संख्या में ग्रामीण ऐसे थे जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं था।

ऐसे में कोरोना वैक्सीन के लिए ग्रामीण कैसे ऑनलाइन पंजीकरण कर पाएंगे, यह फिलहाल संशय की स्थिति है।

भारत सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम से पिछले करीब 50 वर्षों से जुड़े रहे पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट के. सुरेश किशनराव सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करते हैं। 

भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में अभी तक ऐसा कोई सॉफ्टवेयर विकसित नहीं किया गया जो टीकाकरण का सही मूल्यांकन करता हो। को-विन से पहले भी यूपी और बिहार जैसे राज्यों में वैक्सीन कोल्ड मैनेजमेंट के लिए सॉफ्टवेयर विकसित किये गए, मगर ये पूरी तरह सफल नहीं रहे, और राज्यों में भी दूसरे सॉफ्टवेयर के साथ ऐसा ही देखा गया।

के. सुरेश किशनराव, पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट

“भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में अभी तक ऐसा कोई सॉफ्टवेयर विकसित नहीं किया गया जो टीकाकरण का सही मूल्यांकन करता हो। को-विन से पहले भी यूपी और बिहार जैसे राज्यों में वैक्सीन कोल्ड मैनेजमेंट के लिए सॉफ्टवेयर विकसित किये गए, मगर ये पूरी तरह सफल नहीं रहे, और राज्यों में भी दूसरे सॉफ्टवेयर के साथ ऐसा ही देखा गया,” के. सुरेश किशनराव ने कहा।

“जरूरी यह था कि पहले सॉफ्टवेयर से जुड़ी पूरी प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जाता, मगर ऐसा नहीं हुआ और हमें महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में भी को-विन में डाटा एंट्री और सर्टिफ़िकेट दिए जाने में ख़ामियाँ देखने को मिलीं,” के. सुरेश राव कहते हैं।

ऐसे में ग्रामीणों के लिए कोरोना के टीके को लेकर सरकार क्या फैसला लेती है और किसे ऑनलाइन पंजीकरण की कैसे व्यवस्था करती है, यह आने वाले समय में ही पता चल सकेगा। 

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